Water cycle in hindi | जल चक्र क्या है?

Water cycle in hindi – जल चक्र की प्रक्रिया पृथ्वी पर जल को अनेक रूप (जैसे ठोस, द्रव, वाष्प) में परिवर्तित तथा जल भंडारणो में वितरित करने की महत्वपूर्ण प्रक्रिया है इस प्रक्रिया में कुल जल की मात्रा स्थिर रहती है परंतु जल अनेक रूपों में जैसे धरातलीय जल, वायुमंडलीय जल, समुद्री जल व भूजल आदि में विभाजित होता रहता है|

हमारी धरती का 71% हिस्सा पानी से ढका है पृथ्वी पर उपस्थित पानी की कुल मात्रा में से केवल 3% पानी अलवणीय है जिसमें 2.4% ग्लेशियरों व 0.6% नदी, तालाबों, झीलों इत्यादि में पाया जाता है|

हम सभी भली-भांति समझते हैं कि पानी हमारे जीवन में बहुत आवश्यक है पानी के बिना प्रकृति में संतुलन व जीवन असंभव है बड़ी-बड़ी औद्योगिक गतिविधियां, कृषि, विद्युतीय ऊर्जा उत्पादन, अस्पताल, विद्यालय व अन्य दैनिक कार्य बिना पानी के संभव नहीं है|

जल चक्र की यह प्रक्रिया हमारे जीवन में इस्तेमाल करने योग्य पानी तथा पीने के पानी के स्त्रोतों को संरक्षित करती है क्योंकि इस प्रक्रिया के द्वारा ही बड़ी मात्रा में महासागरों का लवणीय जल अलवणीय जल में परिवर्तित होता है व वर्षण के द्वारा नदी, तालाब, सोते, हिमनद तथा भू-जल जैसे जल स्त्रोतों में बँट जाता है और नदी, तालाब, हिमनद इत्यादि ही अलवणीय जल के स्त्रोत हैं जिनका प्रयोग हम दैनिक गतिविधियों को पूरा करने में इस्तेमाल करते हैं|

सामान्यतः जल चक्र की प्रक्रिया चार महत्वपूर्ण चरणों से मिलकर पूर्ण होती है –

  • वाष्पीकरण (Vaporisation) – जल चक्र की इस प्रक्रिया में वाष्पीकरण वह प्रक्रिया है जब सूर्य के ताप (उष्मा) द्वारा समुद्र, नदी, तालाब आदि का जल भाप बनकर वायुमंडल में चला जाता है व इसके अतिरिक्त पौधे द्वारा भी अतिरिक्त जल वाष्पोत्सर्जन द्वारा वाष्प के रूप में बाहर निकल जाता है तथा वह जल भी वायुमंडल में चला जाता है इस प्रक्रिया को वाष्पीकरण कहा जाता है|
  • संघनन – जल चक्र में संघनन वह महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जो वाष्पीकरण के बाद होती है जब वाष्पीकरण द्वारा भाप बना जल या वाष्पित जल ठंडा होकर संघनित हो जाता है तथा बादलों का रूप ले लेता है तो इस प्रक्रिया को ही हम संघनन कहते हैं|
  • वर्षण – जल चक्र की इस महत्वपूर्ण प्रक्रिया में वर्षण उस प्रक्रिया को कहते हैं जब संघनन की प्रक्रिया के पश्चात बादल ठंडी हवाओं के संपर्क में आते हैं तो बादलों में उपस्थित वाष्प कण द्रव यानी पानी की बूंदों में परिवर्तित हो जाते हैं तथा वर्षा के रूप में पृथ्वी पर गिरते हैं इसके अतिरिक्त कई परिस्थितियों में यह संघनित जल फुहार, ओलावृष्टि, हिमपात इत्यादि के रूप में पृथ्वी पर गिरता है|
  • वाह (अपवाह) – जल चक्र की इस प्रक्रिया में वर्षण के पश्चात वाह प्रक्रिया होती है इसमें वर्षा, ओलावृष्टि, हिमपात इत्यादि के रूप में पृथ्वी पर आया जल गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से बहकर समुद्र, नदियों, नालों व जल धाराओं इत्यादि में चला जाता है इसके अतिरिक्त यह जल (ground water) पृथ्वी की सतह के नीचे चला जाता है तथा कुछ पेड़ पौधों की जड़ों द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है|

अतः इस अध्ययन के पश्चात हम अवश्य ही पानी के महत्व व जल चक्र प्रक्रिया की महत्वता को समझ गए हैं परंतु तकनीकी के इस दौर में जल चक्र की यह प्रक्रिया अकुशल कृषि तकनीक, औद्योगिकरण, शहरीकरण, जलवायु का असामान्य परिवर्तन वनों की कटाई, बांधों का निर्माण आदि अनेक मानवीय गतिविधियों द्वारा बुरी तरह प्रभावित हो रही है|

जिससे प्रकृति में असंतुलन उत्पन्न हो रहा है तथा नदियों व पानी के अन्य स्त्रोत सूखने के खतरे से गुजर रहे हैं कावेरी, कृष्णा व नर्मदा में पानी लगभग 40 से 60 फ़ीसदी कम हो चुका है जो अत्यधिक चिंता का विषय है यदि इन समस्याओं को इसी प्रकार नजरअंदाज किया जाता रहा तो संभावना है कि भविष्य में इस्तेमाल योग्य पानी की भयंकर कमी का सामना करना पड़ेगा|

जलचक्र की प्रक्रिया अद्वितीय है यह प्रकृति की एक अनोखी व प्रशंसनीय प्रक्रिया है इसके द्वारा ही प्रकृति में संतुलन बना रहता है तथा प्रकृति पर जीवन चक्र चलता है इसके द्वारा ही पृथ्वी पर जल स्त्रोत संरक्षित रहते हैं तथा उनमें पानी नियमित रूप से व निश्चित मात्रा में पहुंचता रहता है मनुष्य व प्राणियों को पीने के लिए पानी मिलता है|

जल चक्र की प्रक्रिया सामान्य नहीं है इसमें कई प्रकार के अनोखे तथ्य देखने को मिलते हैं जैसे इस प्रक्रिया द्वारा ही समुद्र का लवणीय जल वाष्पीकरण द्वारा अलवणीय बन जाता है दूषित से दूषित जल स्त्रोत से भी शुद्ध जल को पृथक कर दिया जाता है जो प्रकृति के किसी चमत्कार से कम नहीं है|

आज के इस बदलते दौर में जलचक्र की प्रक्रिया तथा प्रकृति के संतुलन में खंडन व असंतुलन देखने को मिल रहा है जिसके कारण जलवायु परिवर्तन, भिन्न-भिन्न स्थानों पर पानी की कमी, सूखा, बाढ़, ग्लोबल वॉर्मिंग जैसी भयंकर समस्या देखने को मिल रही है जो वर्तमान पीढ़ी पर भावी पीढ़ी के लिए चिंता का विषय है|

यदि हमने प्रकृति को नुकसान पहुंचाने वाले क्रियाकलापों व अनवीकरणीय संसाधनों के अंधाधुंध दोहन पर रोक नहीं लगाई रोक नहीं लगाई तो इसके भयंकर परिणामों का सामना करना पड़ सकता है जल स्त्रोत व नदियों में पानी की मात्रा में कमी इस बात को दर्शाती है कि जल चक्र की प्रक्रिया व प्रकृति में असंतुलन उत्पन्न हो रहा है तथा प्राकृतिक प्रक्रियाएँ खंडित हो रही है इनसे बचने के लिए हमें –

वृक्षों की अंधाधुंध कटाई पर रोक लगाने की आवश्यकता है|

संभावित स्थानों पर अधिक से अधिक वृक्ष लगाने की आवश्यकता है|

शहरीकरण पर रोक लगाने या इसकी गति को धीमा कर वहां वृक्षों को स्थान प्रदान करने की आवश्यकता है|

अकुशल कृषि तकनीक में परिवर्तन करके भी जल चक्र की प्रक्रिया को सहयोग किया जा सकता है|

औद्योगीकरण के कारण भी जल प्रदूषण व वायु प्रदूषण बड़ी मात्रा में उत्पन्न होता है जिससे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जलचक्र प्रक्रिया प्रभावित होती है जिस पर ध्यान देने की आवश्यकता है|

बांधों के निर्माण के कारण जल की गुणवत्ता पर असर होता है तथा जल चक्र की प्रक्रिया प्रभावित होती है|

ग्लोबल वार्मिंग के कारण भी जल स्त्रोत व ग्लेशियर प्रभावित हो रहे हैं जिसके कारण प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जल चक्र की प्रक्रिया प्रभावित होती है|