Narak Chaturdashi Kya Hota hai, आज के इस आर्टिकल में हम आपको नरक चतुर्दशी यानी छोटी दिवाली के बारे में बताने जा रहे हैं इस आर्टिकल में आपको यह पढ़ने और समझने को मिलेगा कि इस पर्व को मनाने का मुख्य उद्देश्य क्या होता है और इसको त्यौहार को मानने से हमें किस प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं तो चलिए जानते हैं नरक चतुर्दशी या छोटी दीपावली के बारे में जानते हैं|
आपको यह जानकर प्रसन्नता होगी कि नरक चतुर्दशी को ही रूप चौदस काली चतुर्दशी या छोटी दीपावली कहा जाता है ऐसा माना जाता है कि इस दिन सभी विधि विधान से पूजा करने पर व्यक्ति को सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है और उसके सभी पापों से मुक्ति मिलती है साथ ही भूत प्रेत या नकारात्मक शक्तियों से छुटकारा मिलता है
इस त्यौहार पर सभी लोग शाम के वक्त दीप प्रज्वलित करते हैं और उन्हें अपने पूरे घर में घूमकर पूजा के पश्चात घर से बाहर दान कर देते हैं या कहीं पर रख देते हैं जिसे दीपदान प्रथा भी कहा जाता है ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति इस प्रकार की विधि से पूजा करता है उसे अकाल मृत्यु से मुक्ति प्राप्त होती है इसलिए हम प्राचीन समय से आज तक इस त्यौहार को मनाते आ रहे हैं
इस दिन दीपदान करने और अपने घरों में दीपक जलाने से सभी नकारात्मक ऊर्जा नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति प्राप्त होती है और ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है
नरक चतुर्दशी को छोटी दीपावली इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस दिन भी दीपावली की तरह ही दीपक जलाए जाते हैं और उनका आदान-प्रदान किया जाता है और यह पर्व दीपावली से ठीक 1 दिन पहले होने के कारण भी इस छोटी दीपावली कहते हैं|
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नरक चतुर्दशी से संबंधित प्राचीन कथा के बारे में जानते हैं
एक प्राचीन कथा के अनुसार ऐसा माना जाता है कि भगवान श्री कृष्ण ने आज के दिन 16 100 कन्याओं को नरकासुर के कैद से मुक्ति प्रदान की थी और साथ ही दुराचारी असुर नरकासुर का वध भी किया था
इस उपलक्ष में ही हम नरक चतुर्दशी को मानते हैं आप नाम से भी इस कहानी को जोड़ सकते हैं नरकासुर के वध के कारण ही इस नरक चतुर्दशी कहा जाता है|
क्या है नरक चतुर्दशी से जुड़ी कथा
नरक चतुर्दशी व्रत और पूजा से जुड़ी एक कहानी है जिसमें रंति देव नामक एक पुण्यात्मा और धर्मात्मा राजा थे। उन्होंने जीवन में कोई भी पाप नहीं किया था, लेकिन मृत्यु के समय यमदूत उनके सामने आए।
राजा ने हैरान होकर कहा, “मैंने कोई पाप नहीं किया है, फिर भी आप मुझे नरक क्यों लेने आए हैं?” यमदूत ने बताया कि एक बार आपके द्वार से एक भूखा ब्राह्मण गया था, और यह पापकर्म आपके हिस्से में जुड़ गया था।
राजा ने यमदूत जी से विनती की और एक वर्ष की मोहलत मांगी, जिसे उन्होंने एक वर्ष का समय दे दिया। राजा ने ऋषियों से अपनी समस्या के बारे में बताया और उनसे अपने पापों के लिए क्षमा मांगी। ऋषि ने उन्हें बताया कि कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को व्रत करें, ब्राह्मणों को भोजन करवाएं, और भगवान से क्षमा याचना करें।
राजा ने इसे माना और इस प्रकार उनका पाप मिटा, उन्हें मोक्ष मिला और विष्णु लोक में स्थान प्राप्त हुआ। इसी दिन से कार्तिक चतुर्दशी का व्रत अपनाया जाता है।
इस सच्ची घटना के महत्व के आधार पर कहा जाता है कि सूर्योदय से पहले तेल और चिरचिरी के पत्तों के साथ स्नान करके विष्णु और कृष्ण मंदिर में जाकर पूजा करनी चाहिए। इससे पाप दूर होता है और सौंदर्यिक रूप प्राप्त होता है।
कई घरों में रात को सबसे बुजुर्ग व्यक्ति एक दीया जलाते हैं, जिसे यम का दीया कहा जाता है। यह दीया घर के बाहर ले जाने से ऐसा माना जाता है कि सभी बुराइयां घर से बाहर चली जाती हैं।