Imandar Lakadhare ki kahani | ईमानदार लकड़हारे की कहानी

Imandar Lakadhare ki kahani, कहानियों का हमारे जीवन में एक अपना ही अलग महत्व होता है हमारा बचपन कहानियां सन सुनकर ही बड़ा हुआ होता है जिस बच्चे ने जितनी अच्छी और आकर्षक कहानियां सुनी होती है उसका मानसिक और बौद्धिक विकास उतना ही अच्छा होता है

कहानियां हमारे अंदर नैतिकता को विकसित करती हैं जिसके आधार पर हम जीवन में सही गलत में फर्क कर पाते हैं इसलिए आज के इस आर्टिकल में हम आपको ईमानदार लकड़हारे की कहानी बताने जा रहे हैं आशा करते हैं यदि आप इस कहानी को ध्यान पूर्वक पढ़ते हैं तो आपको यह पसंद आएगी|

ईमानदार लकड़हारे की कहानी

बहुत ही प्राचीन समय की बात है एक छोटे से गांव में रामू नाम का लकड़हारा रहा करता था रामू काफी गरीब था वह प्रतिदिन अपनी लोहे की कुल्हाड़ी से जंगल में जाकर लकड़ियां काटता था और उनका एक गट्ठर बनाकर घर ले आता था उन लकड़ियों को बेचकर वह घर में खाना राशन आदि का प्रबंध करता था|

Imandar Lakadhare ki kahani

वह लकड़ी पूरी ईमानदारी सच्चाई और विनम्रता से अपना जीवन व्यतीत कर रहा था धीरे-धीरे समय बीत गया और एक दिन वह रोज की तरह अपनी लोहे की कुल्हाड़ी लेकर लकड़ी काटने जंगल में निकल जाता है रामू देखता है कि जंगल में उसके आसपास के लगभग सभी पेड़ की लकड़ियां समाप्त हो चुकी हैं फिर उसकी नजर तालाब के किनारे एक पेड़ पर पड़ती हैं राम सोचता है कि उन्हें आज इसी पेड़ की लकड़ी काट ली जाए जिससे आज के खाने का प्रबंध हो जाएगा|

इतना सोच कर रामू लकड़ी काटने के लिए पेड़ पर चढ़ जाता है रामू अपनी लोहे की कुल्हाड़ी से एक टहनी पर वार करने लगता है टहनी मोटी होने के कारण उसमें थोड़ा समय लगता है फिर अचानक लकड़ी काटते काटते उसके हाथ से कुल्हाड़ी छूटकर तालाब में गिर जाती है|

रामू घबरा जाता है और जल्दी से पेड़ से उतरता है और कुल्हाड़ी गिरने वाली जगह पर पानी में हाथ डालकर देखता है उसे कुल्हाड़ी नहीं मिलती

बहुत समय सोचने विचारने के पश्चात रामू सोचता है कि कुल्हाड़ी से लकड़ी काटकर मैं अपना पेट भरता हूं अगर कुल्हाड़ी नहीं मिली तो मैं भूखा मर जाऊंगा इन सभी बातों को सोच कर वह फूट-फूट कर रोने लगता है और जल देवता से प्रार्थना करता है हेजल देवता कृपया मेरी मदद करें मुझे मेरी कुल्हाड़ी वापस दे दे मुझे तैरना नहीं आता और यह तालाब बहुत गहरा है|

कुछ समय पश्चात उस तालाब में से जल देवता प्रकट होते हैं जिनके हाथ में चांदी की कुल्हाड़ी होती है वह लकड़हारे से पूछते हैं कि क्या यह तुम्हारी कुल्हाड़ी है लकड़हारा ईमानदार से जवाब देता है जी नहीं यह मेरी कुल्हाड़ी नहीं है

फिर जल देवता दुबारा जल में डुबकी लगाते हैं और सोने की चमचमाती कुल्हाड़ी लेकर आते हैं और कहते हैं क्या यह तुम्हारी कुल्हाड़ी है लकड़हारा ईमानदार था वह सोने की कुल्हाड़ी देखकर भी यही कहता है जी नहीं यह मेरी कुल्हाड़ी नहीं है|

फिर जल देवता तालाब में डुबकी लगाते हैं और लोहे की कुल्हाड़ी लेकर प्रकट होते हैं और कहते हैं रामू क्या यह तुम्हारी कुल्हाड़ी है रामू कहता है जी हां जलदेवी यह मेरी कुल्हाड़ी है वह अपनी कुल्हाड़ी को देखकर बहुत प्रसन्न हो जाता है और कहता है यह मुझे दे दो|

फिर जल देवता उस लकड़हारे की ईमानदारी चरित्र निष्ठा प्रेम और श्रद्धा को देखकर इतने प्रसन्न हो जाते हैं कि वह कहते हैं रामू मैं तुम्हारी ईमानदारी को देखकर बहुत ही प्रसन्न हुआ हूं इसलिए यह सोने और चांदी की कुल्हाड़ी भी तुम्हें उपहार स्वरूप दे रहा हूं तुम इन्हें बेचकर धन एकत्रित करना और छोटा सा व्यापार शुरू करना जिससे तुम्हारा जीवन सरलता से व्यतीत हो सकेगा|

इतना कहकर जल देवता अंतर्ध्यान हो जाते हैं रामू तीनों कुल्हाड़ी लेकर खुशी-खुशी घर लौटता है और अपने जीवन को बहुत प्रसन्नता से व्यतीत करने लगता है वह और भी अधिक चरित्रवान बन जाता है|

शिक्षा– इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि चाहे हम कितनी भी मुसीबत में हो हमें अपने मौलिक कर्तव्य नैतिक शिक्षा ईमानदारी सत्य निष्ठा अहिंसा जैसे गुणों को नहीं त्यागना चाहिए जिससे हमारे दृढ़ व्यक्तित्व का विकास होता है जो हमें सफलता की ओर ले जाता है|