भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक (कारण)

भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारकों के बारे में जानने से पहले हम जानते हैं कि जलवायु शब्द का क्या अर्थ होता है |

जलवायु- शब्द का प्रयोग किसी स्थान के वातावरण की दशा को बताने या दर्शाने के लिए क्या जाता है तथा मौसम शब्द का अर्थ भी जलवायु शब्द के लगभग समान ही होता है परंतु मौसम का प्रयोग 1 दिन या छोटी अवधि के वातावरण की दशा को व्यक्त करता है तथा जलवायु शब्द का प्रयोग लंबी अवधि के वातावरण की दशा को बताने के लिए किया जाता है |

भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारकों को दो भागों में बांटा गया है
A.स्थिति तथा उच्चावच से संबंधित
B.पवन तथा वायुदाब से संबंधित

स्थिति तथा उच्चावच से संबंधित जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक –

अक्षांश : कर्क रेखा पश्चिम से पूर्व की दिशा में भारत के बीच (मध्य) से गुजरती है इस प्रकार देश का उत्तरी हिस्सा शीतोष्ण कटिबंध में पड़ता है तथा कर्क रेखा के दक्षिण में स्थित हिस्सा उष्ण कटिबंध में पड़ता है |

उष्णकटिबंधीय क्षेत्र भूमध्य रेखा के नजदीक होने के कारण पूरे साल उच्च तापमान व निम्न दैनिक तथा वार्षिक तापांतर का अनुभव करता है, कर्क रेखा से उत्तरी हिस्से में भूमध्य रेखा से अधिक दूरी के कारण उच्च दैनिक तथा वार्षिक तापांतर के साथ जलवायु में विषमता पाई जाती है |

(वार्षिक तापांतर – जनवरी जुलाई के महीने के औसत तापक्रम का अंतर )

हिमालय पर्वत : उत्तर में स्थित हिमालय पर्वत भारत की जलवायु में विषमता का एक महत्वपूर्ण कारण है यह पर्वत श्रंखला उपमहाद्वीप को उत्तरी पवनों से अखंडनीय सुरक्षा प्रदान करती है ये अत्यधिक ठंडी पवने उत्तरी ध्रुव रेखा के निकट उत्पन्न होती है और मध्य व पूर्वी एशिया में आर-पार बहती है इस प्रकार ये पर्वत मानसूनी पवनों को रोककर उपमहाद्वीप में वर्षा का कारक (कारण) बनता है |

जल और स्थल का वितरण : देश के दक्षिण में तीन तरफ हिंद महासागर और उत्तरी तरफ उच्च व लगातार पर्वत श्रेणी है स्थल की तुलना में जल ना तो जल्दी ठंडा होता है और ना ही गर्म होता है इसी कारण भारतीय उपमहाद्वीप में विभिन्न ऋतु में विभिन्न वायुदाब प्रदेश विकसित हो जाते हैं |

समुद्र तट से दूरी : समुद्र तट से दूरी भी भारत की जलवायु को प्रभावित करने का एक बड़ा कारक है क्योंकि लंबी तटीय रेखा के कारण देश के बड़े तटीय क्षेत्रों में संघ जलवायु मिलती है और भारत के भीतरी हिस्सों में विषम जलवायु मिलती है यही कारण है कि मुंबई,कोंकण के तटीय निवासी तापमान में परिवर्तन का अनुभव नहीं कर पाते |

समुद्र तल से ऊंचाई : जैसे कि हम जानते हैं कि ऊंचाई के साथ तापमान में गिरावट आती है विरल वायु के कारण पर्वतीय प्रदेश मैदान की तुलना में ज्यादा ठंडे होते हैं यही कारण है समुद्र तल से ऊंचाई भी जलवायु को प्रभावित करने का एक बड़ा कारक है |

पवन तथा वायुदाब से संबंधित जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक –


इन कारणों को ग्रीष्म ऋतु तथा शीत ऋतु के अनुसार भिन्न भिन्न प्रकार से समझा जा सकता है

1.पवनों का धरातल पर वितरण तथा वायुदाब |
2.भूमंडलीय मौसम को नियंत्रित करने वाले कारणों और वायु संहतियो एवं जेट प्रवाह के अन्तर्वाह द्वारा उत्पन्न ऊपरी वायुसंचरण |
3.शीत ऋतु में पश्चिमी विक्षोभो तथा दक्षिणी पश्चिमी वर्षा ऋतु में उष्णकटिबंधीय अवदाबों के भारत में अन्तर्वहन के कारण से उत्पन्न बरसात की अनुकूल स्थितियां

मौसम की क्रिया विधि को (शीत ऋतु) में इस प्रकार से समझा जा सकता है

1.पवनें तथा धरातलीय वायुदाब :- सर्द ऋतु में भारत का मौसम मध्य एवं पश्चिम एशिया में वायु दाब के फैलाव से प्रभावित होता है सर्द ऋतु में हिमालय के उत्तर में तिब्बत पर उच्च वायुदाब केंद्र स्थापित हो जाता है इस उच्च वायुदाब केंद्र के दक्षिण में भारतीय उपमहाद्वीप की तरफ निम्न स्तर पर धरातल के निकट पवनों का बहना शुरू हो जाता है|
मध्य एशिया के उच्च वायुदाब केंद्र से बाहर की तरफ बहने वाली पवने भारत में शुष्क पवनों के रूप में पहुंचती है|

2.ऊपरी वायु परिसंचरण तथा जेट प्रवाह :- निचले वायुमंडल के क्षोभमण्डल पर धरातल से लगभग 3 किलोमीटर ऊपर बिल्कुल अलग तरह का वायु संचरण होता है ऊपरी वायु संचरण के निर्माण में धरातल के निकट वायुमंडलीय दाब की कोई भूमिका नहीं होती|
9 से 13 किलोमीटर की ऊंचाई पर मध्य एवं पश्चिमी एशिया में पश्चिम से पूर्व बहने वाली पछुआ पवन के प्रभावाधीन होता है|
तिब्बत उच्च भूमि इन जेट प्रवाहों के मार्ग में रुकावट का काम करती है जिस कारण जेट प्रवाह दो भागों में बढ़ जाता है एक शाखा तिब्बत के पठार के उत्तर में बहती है तथा दक्षिणी शाखा हिमालय के दक्षिण में पूर्व की ओर बहती है|

3.उष्णकटिबंधीय चक्रवात तथा पश्चिमी चक्रवातीय विक्षोभ :- उष्णकटिबंधीय चक्रवात बंगाल की खाड़ी तथा हिंद महासागर में उत्पन्न होते हैं इन चक्रवातों से तेज गति की हवाएं चलती है तथा साथ ही वर्षा होती है ये चक्रवात तमिलनाडु, उड़ीसा, आंध्रप्रदेश के तटीय भागों पर टकराते हैं|
पवनों की तीव्रता के कारण यह चक्रवात विनाशकारी होते हैं
पश्चिमी विक्षोभ भारतीय उपमहाद्वीप में सर्दी के मौसम में पश्चिम तथा उत्तर पश्चिम से प्रवेश करते हैं भूमध्य सागर पर उत्पन्न होते हैं भारत में उनका प्रवेश पश्चिमी जेट द्वारा होता है शीत ऋतु में रात में तापमान में वृद्धि इन विक्षोभो के आने का संकेत माना जाता है|

मौसम की क्रिया विधि को (ग्रीष्म ऋतु) में इस प्रकार से समझा जा सकता है

1.पवनें तथा धरातलीय वायुदाब :- गर्मी का मौसम प्रारंभ होने पर जब सूर्य उत्तरायण स्थिति में आता है उपमहाद्वीप के निम्न तथा उच्च दोनों स्तरों पर वायु परिसंचरण में उत्क्रमण हो जाता है|
जुलाई के मध्य तक धरातल के निकट निम्न वायुदाब पेटी जिसे अंतः उष्ण कटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र कहा जाता है I.T.C.Z निम्न वायुदाब का क्षेत्र होने के कारण विभिन्न दिशाओं से पवनों को अपनी और आकर्षित करता है|

2.ऊपरी वायु संचरण तथा जेट प्रवाह :- जून में प्रायद्वीप के दक्षिणी भाग पर पूर्वी जेट प्रवाह 90 किलोमीटर प्रति घंटा की गति से चलता है यह जेट प्रवाह अगस्त में 15 तथा सितंबर में 22 उत्तर अक्षांश पर स्थित होता है ऊपरी वायुमंडल में पूर्वी जेट प्रवाह 30 उत्तर अक्षांश से परे नहीं होता|

3.पूर्वी-जेट प्रवाह तथा उष्णकटिबंधीय चक्रवात :- पूर्वी-जेट प्रवाह उष्णकटिबंधीय चक्रवातो को भारत में लाता है ये चक्रवात भारतीय उपमहाद्वीप में वर्षा के वितरण में अहम भूमिका निभाते हैं|
इन चक्रवातो की बारंबारता, दिशा, गहनता एवं प्रवाह एक लंबे दौर में भारत की ग्रीष्मकालीन वर्षा के प्रतिरूप निर्धारण पर पड़ता है|