Jagannath puri mandir history in hindi | जगन्नाथ पुरी मंदिर का इतिहास, कहानी

Jagannath puri mandir history in hindi, आपने कई बार जगन्नाथ मंदिर की यात्रा की होगी, लेकिन क्या आपको पता है कि इस अद्भुत मंदिर का निर्माण कैसे हुआ था? अगर नहीं, तो आइए इस प्राचीन मंदिर के बारे में थोड़ी और जानकारी प्राप्त करें।

ओडिशा में स्थित जगन्नाथ मंदिर एक ऐसा धार्मिक स्थल है जो अपनी अनूठी सुंदरता और महत्व के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर को पुरातात्विक काल से स्वर्ग माना जाता है और कहा जाता है कि यहां भगवान विष्णु ने पुरुषोत्तम नीलमाधव के रूप में अवतार लिया था। इस कारण, इसे चार धाम तीर्थ स्थलों में गिना जाता है।

जगन्नाथ पुरी मंदिर में भगवान के आशीर्वाद को प्राप्त करने के लिए हर वर्ष लाखों-लाखों भक्त ओडिशा यात्रा करते हैं और इस पवित्र स्थल का दर्शन करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस मंदिर का इतिहास कैसे बना? अगर नहीं, तो आइए हम इसके निर्माण के रहस्यमय इतिहास को जानते हैं।

क्या है? : जगन्नाथ मंदिर की कहानी

मंदिर का निर्माण गंग वंश के प्रसिद्ध राजा अनंतवर्मन चोडगंग ने 12वीं शताब्दी में करवाया था। हालांकि, दुनिया भर में कई हिंदू मंदिरों के विपरीत, गैर-हिंदुओं को भगवान जगन्नाथ मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं है। पौराणिक कथाओं के अनुसार राजा को एक बार सपने में भगवान जगन्नाथ के दर्शन हुए थे। सपने में राजा से गुफा को ढूंढकर मूर्ति को स्थापित करने को कहा था।

खासियत: जगन्नाथ मंदिर की

आपको जानकर हैरानी होगी कि इस मंदिर को बनने में लगभग 14 वर्ष लगे। वैसे मंदिर में स्थापित बलभद्र जगन्नाथ तथा सुभद्रा की काष्ठ मूर्तियों का पुनर्निर्माण 1863, 1939, 1950, 1966 तथा 1977 में भी किया गया था।

कहा जाता है कि यह मंदिर भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण को समर्पित है। भगवान जगन्नाथ इस मंदिर में अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ विराजन हैं। आश्चर्यचकित कर देने वाली बात यह है कि मंदिर के शीर्ष पर लगा ध्वज हमेशा हवा के विपरीत लहराता है।

जगन्नाथ मंदिर की संरचना:

इस मंदिर की संरचना लगभग 400,000 वर्ग फुट में फैली हुई है। इसके शिखर पर चक्र और ध्वज भी स्थापित किया गया है। इन दोनों का खास महत्व है। सुदर्शन चक्र का और लाल ध्वज भगवान जगन्नाथ के मंदिर के अंदर विराजमान होने का प्रतीक है। अष्टधातु से निर्मित इस चक्र को नीलचक्र भी कहा जाता है।

मंदिर में चार कक्ष हैं जिनके नाम भोग मंदिर, नाथ मंदिर, जगमोहन और मंदिर हैं। मंदिर परिसर एक दीवार से घिरा हुआ है, जिसके प्रत्येक तरफ द्वार है। कुल मिलाकर मंदिर बहुत खूबसूरत है, जिसे देखकर ही मजा आ जाएगा।

कुछ रोचक तथ्य: जगन्नाथ मंदिर जुड़े

  • माना जाता है कि हम मंदिर के शीर्ष पर लगे सुदर्शन चक्र को कहीं से भी देख सकते हैं।
  • कहा जाता है कि ऊपर से कोई भी पक्षी या विमान नहीं उड़ पाता है।
  • बताया जाता है कि इस मंदिर में भक्तों के लिए बनने वाला प्रसाद कभी कम नहीं पड़ता है।
  • जगन्नाथ मंदिर के शिखर पर स्थित झंडा हमेशा हवा की विपरीत दिशा में लहराता है। जगन्नाथ मंदिर की चोटी पर लगा झंडा सिद्धांत का एक अनूठा अपवाद है।

जगन्नाथ मंदिर का समय:

जगन्नाथ मंदिर में दर्शन करने के लिए कोई प्रवेश शुल्क नहीं लगता है। जगन्नाथ पूरी मंदिर सुबह 5:00 से रात के 12:00 बजे तक खुला रहता है। आप किसी भी वक्त दर्शन करने के लिए जा सकते हैं।

कैसे जाएं जगन्नाथ पुरी मंदिर ?

आप मंदिर का दर्शन करने के लिए ट्रेन, सड़क मार्ग, फ्लाइट ले सकते हैं। मगर बेहतर होगा कि ट्रेन का सफर करें क्योंकि पुरी रेल स्टेशन भारत के सभी हिस्सों से अच्छी तरह से जुड़ा है। यहां से मंदिर के लिए सीधा टैक्सी ली जा सकती है।

आपको भी इस जगह की यात्रा कम से कम एक बार जरूर करनी चाहिए। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो इसे शेयर जरूर करें व इसी तरह के अन्य लेख पढ़ने के लिए जुड़ी रहें आपकी अपनी वेबसाइट Tacknews.com के साथ।

जगन्नाथ पुरी मंदिर का रहस्य

पुरी शहर में स्थित इस मंदिर में, भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बालभद्र, और बहन सुभद्रा की काठ (लकड़ी) की मूर्तियां स्थित हैं। यह मंदिर उनकी लकड़ी की मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध है, जो इसे अद्वितीय बनाती है। भगवान जगन्नाथ मंदिर की अनेक विशेषताएं हैं, और इसके साथ ही कई पुरानी कहानियां जुड़ी हुई हैं, जो इसे एक रहस्यमय स्थान बनाती हैं।

हिंदू धर्म के अनुसार, बदरीनाथ, द्वारिका, रामेश्वरम, और पुरी चार प्रमुख धाम हैं। माना जाता है कि भगवान विष्णु ने चारों धामों पर अपने आवतरण का अनुभव किया और सबसे पहले बदरीनाथ में विराजमान हुए, फिर द्वारिका गए, और अंत में पुरी पहुंचे, जहां उन्होंने विशेष रूप से भोजन किया।

इस मंदिर से जुड़ी एक पौराणिक कथा कहती है कि भगवान कृष्ण के अंतिम संस्कार के समय, उनका शरीर पंचतत्व में मिल गया, लेकिन उनका हृदय एक जीवित दिल की तरह रहा और वह दिल आज भी इस मंदिर में सुरक्षित है, जो भगवान जगन्नाथ की मूर्ति में स्थित है।

मंदिर में मूर्तियां हर 12 साल में बदली जाती हैं

हर 12 साल के अंतराल में, जगन्नाथ पुरी मंदिर की तीनों मूर्तियां नए रूप में परिवर्तित होती हैं। इस विशेष प्रक्रिया में, पुरानी मूर्तियों को नई मूर्तियों से स्थानांतरित किया जाता है। इस मूर्ति परिवर्तन के दौरान, पूरे शहर में बिजली की आपूर्ति को कटा जाता है, और मंदिर के परिसर को पूरी तरह से अंधकार में ढका जाता है। मंदिर के बाहर, सीआरपीएफ के सुरक्षा कर्मी तैनात किए जाते हैं और मंदिर के अंदर किसी भी व्यक्ति की प्रवेश को पूरी तरह से निषेध किया जाता है, केवल उन पुजारियों को छोड़कर जिन्हें मूर्तियां परिवर्तित करने की अनुमति होती है।

पुजारी को बंद आंखों और हाथों में ग्लव्स पहने जाते हैं, और इस घड़ी महत्वपूर्ण कार्य की शुरुआत होती है। नई मूर्तियां पुरानी मूर्तियों की जगह स्थापित की जाती हैं, लेकिन ब्रह्म पदार्थ एक ऐसी वस्तु है जो कभी नहीं बदलती है। इसे पुरानी मूर्ति से हटाकर नई मूर्ति में स्थानांतरित किया जाता है, इससे इसका महत्वपूर्ण संरचना बनी रहती है।

रहस्यमय ब्रह्म पदार्थ क्या है?

ब्रह्म पदार्थ एक रहस्यमय और अत्यंत महत्वपूर्ण वस्तु है, जिसके बारे में आजतक कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है। इसके विषय में कुछ किस्से मूर्ति बदलने वाले पुजारियों से सुने गए हैं, लेकिन इसके सच्चाई को लेकर अब तक किसी को भी यकीनी जानकारी नहीं है। इसे हर 12 साल में मूर्तियों के परिवर्तन के समय देखा जाता है, लेकिन यह ब्रह्म पदार्थ क्या है, इसका असली रहस्य किसी के लिए न तो खोला गया है और न ही बताया गया है।

इस पदार्थ के बारे में यह भी कहा जाता है कि अगर किसी ने इसे देख लिया, तो उसकी मौत हो जाएगी और उसके शरीर के छिद्र उड़ जाएंगे। इसके साथ ही, एक किस्से में यह भी सुना जाता है कि जब इस पदार्थ को देखा जाता है, तो श्रीकृष्ण के साथ जुड़ा होता है। पुजारियों की कई रिपोर्ट्स में यह भी दावा किया गया है कि इस पदार्थ को देखते समय उनके हाथों में कुछ उछल रहा होता है, जैसे कि श्रीकृष्ण के साथ विशेष जड़ाबूत होने का अहसास होता है।

इस प्रकार, ब्रह्म पदार्थ के बारे में अनेक कथाएँ और रहस्य हैं, लेकिन इसकी वास्तविकता क्या है, यह अब तक एक गहरा रहस्य बनी हुई है।

क्या है रोचक सिंहद्वार का रहस्य

जगन्नाथ पुरी मंदिर, जो समुद्र के किनारे स्थित है, एक अद्वितीय सिंहद्वार से पहले अपनी अनोखी विशेषताओं के लिए प्रसिद्ध है। सिंहद्वार में कदम रखने से पहले, सुनसान समंदर की लहरों की गुंजाइश सुनी जा सकती है, जो एक अद्वितीय अनुभव प्रदान करती है। इस रहस्यमय प्रक्रिया में, समंदर की लहरों की ध्वनि सुनना एक अद्वितीय अनुभव है, जो यात्री को मंदिर की यात्रा के दौरान अद्वितीय माहौल में ले जाता है।

जब कदम सिंहद्वार के अंदर रखा जाता है, तो समंदर की लहरों की आवाज गहराईयों में समाहित हो जाती है, एक भयंकर सुकून के साथ। लेकिन जैसे ही पहला कदम बाहर निकलता है, समंदर की लहरों की ध्वनि पुनः सुनाई देना शुरू होता है, इससे यह आभास होता है कि यात्री वापस लौट रहा है।

इस सिंहद्वार की अद्वितीयता में एक और रहस्य छिपा हुआ है, क्योंकि सिंहद्वार से निकलते समय आसपास जलाई जाने वाली चिताओं की गंध भी अनुभूत होती है, जो कदम बाहर निकालने पर समाप्त हो जाती है। इस विचित्र अनुभव के बावजूद, इस सिंहद्वार के रहस्य को लेकर अब तक कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है, जो इसे एक निष्कलंक और अद्वितीय स्थान बनाए रखती है।

पक्षी नहीं नजर आते मंदिर के ऊपर

जगन्नाथ मंदिर की अद्वितीयता में एक और रहस्य छिपा हुआ है, जो सामान्यतः अन्य स्थानों में देखे जाने वाले पक्षियों के बैठे होने के अनुभव से अलग है। इस मंदिर के परिसर में कभी भी किसी पक्षी को उड़ते हुए या बैठे हुए नहीं देखा गया है। आमतौर पर मंदिरों या मस्जिदों पर पक्षियाँ बैठी रहती हैं, लेकिन यहां ऐसा दृश्य कभी भी नहीं दिखाई जाती।

इस अद्वितीय रहस्य के कारण, मंदिर के ऊपर से हवाई जहाज और हेलिकॉप्टर की उड़ानों पर भी मनाही है। यह अद्भुत और अज्ञेय गतिविधि का स्रोत बनता है जो इस स्थान को अधिक रहस्यमय बनाए रखता है। इस विशेषता के पीछे विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताएं हो सकती हैं, जो इस मंदिर को और भी अनूठा बनाती हैं।

जगन्नाथ मंदिर का अद्वितीय रहस्य

जगन्नाथ मंदिर, जो करीब चार लाख वर्ग फीट के क्षेत्र में स्थित है, अपनी अनूठी विशेषताओं से प्रसिद्ध है। इसकी ऊचाई 214 फीट है, लेकिन अद्वितीयता यहाँ की परछाई में छुपी है। सामान्यत: दिन में किसी भी इमारत या वस्तु की परछाई ज़मीन पर दिखती है, लेकिन जगन्नाथ मंदिर की परछाई किसी ने भी देखी नहीं है।

इसके अलावा, मंदिर के शिखर पर लगा गया झंडा भी अद्वितीय है। इसे रोज़ बदलने का नियम है और मान्यता है कि यदि इसे कभी नहीं बदला गया, तो मंदिर 18 सालों के लिए बंद हो सकता है। इस झंडे का एक और रहस्य यह है कि यह हमेशा हवा की विपरीत दिशा में उड़ता है।

आगे बढ़ते हुए, मंदिर के शिखर पर एक सुदर्शन चक्र भी स्थित है, जिसे देखने पर माना जाता है कि यह आपकी दिशा में मुख कर लेता है, अगर आप पुरी के किसी भी कोने से इसे देखते हैं। जगन्नाथ मंदिर का यह अनूठा संसार अपनी रहस्यमयी विशेषताओं से सजा हुआ है और इसे अनवरत रहने वाला एक आध्यात्मिक स्थल माना जाता है।

मंदिर की अद्वितीय रसोई का खुलासा

यह कहा जाता है कि जगन्नाथ मंदिर की रसोई दुनिया की सबसे बड़ी है, जहां 500 रसोइये और 300 सहयोगी काम करते है। यहां का एक रहस्य है कि इस रसोई से कभी भी प्रसाद की कमी नहीं होती, चाहे लाखों भक्त यहां आए। लेकिन जैसे ही मंदिर के गेट बंद होते हैं, प्रसाद अपने आप समाप्त हो जाता है, इसका रहस्य है कि यहां प्रसाद कभी व्यर्थ नहीं जाता।

इसके अलावा, मंदिर में बनने वाला प्रसाद लकड़ी के चूल्हे पर बनाया जाता है। सात बर्तनों में बनने वाला यह प्रसाद अद्वितीयता का परिचय करता है। सभी सात बर्तनों को एक के ऊपर एक करके स्थापित किया जाता है, जिससे एक सीढ़ी की तरह बनता है। सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि सबसे ऊपर का बर्तन, अर्थात सातवां बर्तन, में प्रसाद सबसे पहले तैयार होता है। इसके बाद छठवां, पांचवां, चौथवां, तीसरा, दूसरा और पहला, यानी सबसे नीचे का बर्तन, क्रम से प्रसाद तैयार होता है।