Bhediya ki kahani in hindi | चरवाहा और भेड़िया की कहानी

Bhediya ki kahani in hindi, इस लेख में हम आपको चरवाहे और भेड़िए की कहानी सुनाने जा रहे हैं इस कहानी के माध्यम से आपको यह सीखने को मिलेगा कि हमें यूं ही किसी पर भी अंधविश्वास नहीं कर लेना चाहिए चाहे उसने तुम्हारा विश्वास क्यों ना जीत लिया हो|

यह कहानी आपको जीवन के अनेक नैतिक मूल्यों का ज्ञान प्रदान करेगी यदि आप इस कहानी को ध्यान पूर्वक पढ़ते हैं तो आप इससे बहुत सारी नैतिक चीजें सीख सकते हैं जो जीवन में सफलता के लिए बहुत आवश्यक है|

चरवाहा और भेड़िया की कहानी

एक समय की बात है एक गांव में एक चरवाहा रहता था जिसके पास बहुत सारे सीधे-साधे भेड़ थे वह चरवाहा प्रतिदिन भेड़ो को चराने के लिए जंगल में जाया करता था|

bhediya or bhed ki dosti ki kahani

एक दिन चरवाहे को पता चला कि इन भेड़ो के पीछे एक भेड़िया निगरानी कर रहा है वह इस बात का अवसर ढूंढ रहा है कि कब मौका मिले और कब में इन भेड़ो पर हमला करू और इन्हे खा जाऊ|

एक दिन रोजाना की तरह चरवाहा भेड़ और बकरियों को लेकर चराने जा रहा था फिर भेड़िया चुपके से भेड़ों के झुंड में घुस गया और उनके साथ चलने लगा

इसी प्रकार से रोजाना चरवाहा भेड़ों का चराने जाता और भेड़िया उनके झुंड में मिलकर उनके साथ चलने लगता परंतु पेड़ों को कोई भी नुकसान नहीं पहुंचा था

इस प्रकार से चरवाहे को भेड़िए पर विश्वास हो गया कि यह भेड़िया भेड़ों को कोई भी नुकसान नहीं पहुंचाएगा

एक दिन चरवाहे को किसी महत्वपूर्ण कार्य को पूरा करने के लिए शहर जाना पड़ गया फिर भी वह चरवाहा अगले दिन भेड़िए की निगरानी में भेड़ों को चरने छोड़ दिया क्योंकि चरवाहे ने भेड़िए पर विश्वास कर लिया था कि वह भेड़ बकरियों को किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचाएगा वह इनका मित्र है

फिर कुछ समय बाद जैसे ही चरवाहा शहर के लिए निकलता है तो भेड़िया सोचता है कि यह अच्छा अवसर है अपनी भूख मिटाने का फिर धीरे-धीरे भेड़िया सारे भेड़-बकरियों को बेरहमी से मारकर खा जाता है

जैसे ही चरवाहा शहर से वापस आ जाता है तो सभी भेड़ बकरियों को मरा हुआ देखकर वह बहुत दुखी होता है और फूट-फूट कर रोने लगता है और कहता है कि “काश मैंने इस भेड़िये के ऊपर विश्वास नहीं किया होता तो मेरी सारी भेड़ और बकरियां मरी ना होती|

शिक्षा – इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि यदि हमारे आसपास यह समाज में भेड़िए जैसे चरित्र के मित्र है तो वह शत्रु से भी ज्यादा खतरनाक है इसलिए हमें लोगों के चरित्र को पहचान कर ही उन पर विश्वास करना चाहिए या सबसे अधिक विश्वास खुद पर और ईश्वर पर रखना चाहिए परंतु बेवजह किसी पर अंधविश्वास नहीं करना चाहिए|