Murkh saras ki kahani इस आर्टिकल में हम आपको मूर्ख सारस और केकड़े की कहानी सुनाने जा रहे हैं किस प्रकार एक मूर्ख सारस अपनी सीमाओं को भूल कर गलतियां करता है और अपने जीवन को कठिनाई में डालता है इस कहानी से हम अनेक प्रकार की चीजों को सीख सकते हैं जो हमारे सामान्य जीवन में बहुत कम आती है|
मूर्ख सारस और केकड़ा की कहानी
एक समय की बात है, कि एक सारस और एक केकड़ा एक झील में रहते थे। ये दोनों जीवों की दोस्ती बहुत पुरानी थी और वे एक-दूसरे के साथ बहुत मस्ती करते थे। हर रोज, ये दोस्त एक साथ खेलने जाते थे और अपनी बातें साझा करते थे।
एक दिन, जब सारस और केकड़ा झील के किनारे खेल रहे थे, तभी एक मूर्ख सारस नजर आया। वह बहुत ही भड़कीला था और दिखने में बहुत गर्वित था। मूर्ख सारस ने उन्हें देखते ही खुशी से उछलना शुरू कर दिया और चिड़िया की तरह उड़ने लगा।
सारस उड़ते-उड़ते अपनी दोस्त केकड़े के पास पहुंचा और उसे देखते ही उसने कहा, “देख, मेरे पास देखा, मैं यहां तक उड़ सकता हूँ! क्या तू भी इतनी ऊँचाई तक उड़ सकता है?”
केकड़ा शांत रहते हुए उसके पास आया और बोला, “दोस्त, यह तो तेरा बहुत अच्छा काम है कि तू इतनी ऊँचाई तक उड़ सकता है। लेकिन मैं अगर इतनी ऊँचाई तक उड़ने की कोशिश करूँगा तो गिर जाऊंगा। मुझे अपनी सीमाओं में रहने में खुशी है।”
मूर्ख सारस ने केकड़े के उत्तर को सुनते ही हंसते हुए कहा, “तू तो बहुत डरपोक है, केकड़ा! विजेता तो वही होता है जो नई ऊँचाइयों को छू सकता है।” फिर मूर्ख सारस उड़ने के लिए और ऊँचाई तक पहुंचने के लिए प्रयास करने लगा।
हालांकि, मूर्ख सारस ने अपनी अहंकार की वजह से अपनी सीमाओं को भूल गया। वह बहुत ऊँची ऊँचाई पर पहुंच गया, लेकिन उसे वापस लौटने का कोई रास्ता नहीं दिखाई दे रहा था। वह घबराया और नीचे गिरने लगा।
वहां से, केकड़ा ने उसे देखा और चुपचाप कहा, “देखा, मैंने कहा था ना कि तू गिरेगा। तू अपने गर्व में इतना उच्च उड़ाने की कोशिश कर रहा था कि तू अपनी ही सीमाओं को भूल गया।”
मूर्ख सारस ने अपनी भूल को स्वीकार किया और नीचे गिरने के बाद वह केकड़े के पास आया। उसने केकड़े से माफी मांगी और बताया कि वह अपनी गलती समझ गया है।
केकड़ा ने उसे अपने पंखों में समेटते हुए कहा, “दोस्त, हम सबको कभी-न-कभी गलतियाँ हो जाती हैं, लेकिन महत्वपूर्ण है कि हम अपनी सीमाओं को ध्यान में रखें और हमेशा सतर्क रहें।”
दोस्ती की इस महान उदाहरण के बाद सारस और केकड़ा फिर से दोस्त बन गए और साथ में खेलने का मजा लेने लगे।
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सीख़ – इस कहानी से हमें यह सिखाने का संदेश मिलता है कि अहंकार और गर्व हमें अपनी सीमाओं को भूलने पर मज़बूर कर देता हैं, जबकि हमें सतर्क रहना चाहिए और अपनी सीमाओं में रहकर अपनी सामर्थ्य को स्वीकार करना चाहिए।