Sindhu Ghati Sabhyata in Hindi – सिंधु घाटी सभ्यता एक ऐसा विषय है जो इतिहास के विद्यार्थियों के साथ साथ उन सभी विद्यार्थियों या उम्मीदवारों के लिए उपयोगी है जो किसी भी सरकारी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं यह विषय इतना महत्वपूर्ण है कि यह है सामान्य सरकारी नौकरी की तैयारी के लिए भी महत्वपूर्ण है तथा यूपीएससी की तैयारी कर रहे उम्मीदवारों के लिए भी महत्वपूर्ण है, इसलिए आज के इस आर्टिकल में हम आपको सिंधु घाटी सभ्यता से संबंधित सभी महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करने जा रहे हैं इसलिए जो उम्मीदवार सिंधु घाटी सभ्यता से संबंधित सभी आवश्यक जानकारी को स्पष्ट करना चाहते हैं आर्टिकल को अंत तक ध्यानपूर्वक पढ़ें और यदि यह आर्टिकल आपको पसंद आता है तो इसे अपने दोस्तों व मित्रों के साथ भी अवश्य शेयर करें जिससे उन्हें भी इस विषय पर इतनी क्लियर और स्पष्ट जानकारी प्राप्त हो सके|
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि सिंधु घाटी सभ्यता से संबंधित लोगों की अनेक प्रकार की धारणाएं होती हैं जिसमें से एक यह है कि सिंधु घाटी सभ्यता को लगभग 5500 साल पुराना माना जाता है परंतु मीडिया के एक आर्टिकल के अनुसार ऐसा माना जाता है कि आईटीआई खड़कपुर और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के वैज्ञानिकों ने सिंधु घाटी सभ्यता से संबंधित कुछ ऐसे तथ्य खोज निकाले हैं जिनसे पता चलता है कि यह सभ्यता पूरी तरह 8000 साल पुरानी है इसलिए जानते हैं इस सभ्यता से संबंधित अतिरिक्त सभी महत्वपूर्ण जानकारी|
सिंधु घाटी सभ्यता इतिहास का एक महत्वपूर्ण विषय है इसलिए हम सिंधु घाटी सभ्यता को पढ़ने से पहले इससे जुड़े कुछ अन्य महत्वपूर्ण तथ्य समझते हैं
सबसे पहले जानते हैं इतिहास किसे कहते हैं “इतिहास” अतीत में घटित सभी महत्वपूर्ण घटनाओं का एक विशेष विवरण है या अतीत से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्यों व अन्य सभी जानकारी को विस्तार पूर्वक पढ़ना ही इतिहास कहलाता है हेरोडोटस को इतिहास का जनक कहा जाता है सामान्य रूप से अध्ययन की सुविधा के लिए इतिहास को तीन काल में विभाजित किया गया है जो निम्नलिखित प्रकार से हैं|
- सबसे पहला है प्रागैतिहासिक काल
- दूसरा है आद्य ऐतिहासिक काल
- और तीसरा है ऐतिहासिक काल
उपरोक्त दी गई जानकारी को पढ़ने के बाद आप इस थ्योरी को अच्छी प्रकार से रिलेट कर पाएंगे|
सिंधु घाटी सभ्यता – आद्य ऐतिहासिक काल की सभ्यता है इसे हम कांस्य युगीन सभ्यता भी कहते हैं इसके अध्ययन के पश्चात यह पता चलता है कि इसे भारतीय उपमहाद्वीप की प्रथम नगरीय सभ्यता का गौरव प्रदान करना गलत नहीं होगा, क्योंकि खुदाई के दौरान जब यह पाया कि इस सभ्यता में अधिकतर चीजें व्यवस्थित तरीके से बनी हुई थी यानी स्नान कुंड से लेकर घरों के दरवाजे, नालियों और कमरों का स्ट्रक्चर एक शहरी सभ्यता के अनुसार ही था, पानी के निकास के लिए नालियां ढकी हुई थी इसके अतिरिक्त अन्य तथ्य भी मौजूद थे इन सभी तथ्यों के आधार पर इसे हम प्रथम नगरीय सभ्यता का गौरव प्रदान करते हैं|
वैज्ञानिकों के अनुसार इस सभ्यता का सर्वमान्य कालक्रम 2400 ईसा पूर्व से 1750 ईसा पूर्व तक माना जाता है आपकी जानकारी के लिए बता दें कि (कार्बन डेटिंग पद्धति) रेडियो कार्बन सी 14 नवीन विश्लेषण पद्धति के द्वारा इसकी खोज में यह तिथि (2400 ईसा पूर्व से 1750 ईसा पूर्व) सुनिश्चित की गई है यदि आप सिंधु घाटी सभ्यता को भारतीय मानचित्र में स्थानों के आधार पर अध्ययन करेंगे तो आप पाएंगे कि यह सभ्यता त्रिभुजाकार क्षेत्र में फैली हुई थी|
यदि बात करें सिंधु घाटी सभ्यता के विस्तार की तो इसका विस्तार इस प्रकार से था भारतीय मानचित्र पर इसे इस प्रकार से रेखांकित किया जा सकता है
- उत्तर भारत में मांडा (जम्मू कश्मीर) चिनाव नदी तक
- दक्षिण भारत में दैमाबाद महाराष्ट्र प्रवरा नदी तक
- पूर्व भारत में अलमगीरपुर मेरठ हिंडन नदी तक
- और पश्चिम भारत में शुद्ध सुत्कागेंडोर बलूचिस्तान दाश्क नदी तक
यदि सभ्यता के फैलाव के कुल क्षेत्रफल की संख्या की बात करें तो इस सभ्यता का क्षेत्रफल विस्तार 1299600 वर्ग किलोमीटर तक था जिसे हम अनुमानित रूप से लगभग 1300000 वर्ग किलोमीटर भी कह सकते हैं|
अब बात करते हैं सिंधु घाटी सभ्यता के नगर नियोजन के संबंध में
आपकी सहायता के लिए बताना चाहते हैं कि नगर नियोजन का साधारण सा अर्थ है किसी भी भूमि के क्षेत्रफल को सुचारू रूप से चलाने व उसके विकास के लिए योजनाबद्ध ढंग से बसाना ही नगर नियोजन कहलाता है तो आइए जानते हैं सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों ने अपने क्षेत्रफल को किस तरह से सजाया और बसाया था|
- सिंधु घाटी सभ्यता में बने घरों व अन्य स्थानों में प्रयोग की जाने वाली ईटों की लंबाई चौड़ाई तथा ऊंचाई का अनुपात 4:2:1 था
- खोज करने यह अध्ययन के दौरान यह पाया गया कि लोथल नगर के घरों के दरवाजे मुख्य सड़क की ओर खुलते थे परंतु इस नगर के अतिरिक्त सभी घरों के दरवाजे और खिड़कियां मुख्य सड़क के स्थान पर पीछे की ओर खुला करते थे यानी उन्होंने घरों या कमरों का स्ट्रक्चर इस प्रकार से बनाया था कि घरों के दरवाजे मुख्य सड़क की ओर न खुलकर पीछे की ओर खुलें
- मोहनजोदड़ो सिंधु घाटी सभ्यता का एक ऐसा स्थल है जहां एक महा स्नानागार खोजा गया जिसके बीच में एक स्नान कुंड है जिसकी लंबाई 11.88 मीटर और चौड़ाई 7.01 मीटर तथा गहराई 2.43 मीटर थी
- खोज के दौरान मोहनजोदड़ो स्थल पर सबसे बड़ी ईट 51.43 सेंटीमीटर मापी गई है
- सिंधु घाटी सभ्यता के नगर नियोजन में यह पाया गया कि यहां की नालियां ढकी हुई थी
- राजमार्गों के दोनों किनारों पर पकी हुई ईटों से दो विशाल सीवर खोदे गए थे
- इस सभ्यता में एक महत्वपूर्ण ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि यहां पर जल निकास के लिए जल फिल्ट्रेशन की व्यवस्था भी पाई गई जिससे पानी में मोटा कूड़ा करकट या अपशिष्ट ना बहे और गंदे पानी का निकास हो सके
- इस सभ्यता में असेंबली हॉल धार्मिक भवन अन्ना भंडार गृह और स्नानागार जैसी चीजें पाई गई थी
- उपरोक्त दिए गए सभी तथ्यों को ध्यान में रखकर हम इसे नगरीय सभ्यता का गौरव प्रदान करते हैं|
अब जानते हैं सिंधु घाटी सभ्यता में समाज का स्तर क्या था ?
- इस सभ्यता का समाज सामान्य रूप से 4 वर्गों में विभाजित था पहला था विद्वान दूसरा योद्धा तीसरा शिल्पकार और चौथा व्यापारी
- इस सभ्यता का समाज मनोरंजन के लिए निम्नलिखित कार्य क्या करते थे जैसे शिकार करना नृत्य संगीत जुआ खेलना आदि
- इस सभ्यता में आज ही की तरह मृत शरीर को जलाने और दफनाने की प्रथा थी
- इसके अतिरिक्त यह वेश्यावृत्ति और पर्दा प्रथा भी प्रचलित थी
- सिंधु घाटी सभ्यता का समाज मातृसत्तात्मक था यानी यहां परिवारों की सत्ता अधिकार और परंपरा स्त्री के हाथों में होती थी और विवाह के पश्चात पुरुष का मुख्य स्थान स्त्री के घर में हो जाता था इसके विपरीत आज स्त्री का मुख्य स्थान पुरुष के घर में हो जाता है|
सिंधु घाटी सभ्यता में धर्म से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों का वर्णन इस प्रकार से है
- आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि स्वास्तिक चिन्ह हड़प्पा सभ्यता यानी सिंधु घाटी सभ्यता की ही देन है कालीबंगा नामक स्थल से अग्नि कुंड का साक्ष्य प्राप्त हुआ है
- सभ्यता के समय एकश्रृंगी पशु पवित्र माना जाता था
- इस सभ्यता के समय लोग अंधविश्वास में विश्वास रखते थे और जादू टोना जैसी प्रक्रिया भी करते थे
- आपको यह जानकर प्रसन्नता होगी कि सिंधु घाटी सभ्यता के लोग प्रकृति पूजक थे और मातृ देवी एवं पशुपति शिव की पूजा भी किया करते थे मातृ शक्ति में विश्वास करना लोगों की प्राथमिकता थी|
अब जानते हैं सिंधु घाटी सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता से संबंधित अर्थव्यवस्था किस प्रकार की थी?
- इस समय अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि थी लोग मटर गेहूं जो कपास जैसी फसलें मुख्य रूप से उगाते थे कपास को इस सभ्यता के दौरान सिण्डॉन कहा जाता था
- इस समय के लोगों को फुट तथा क्यूबिक की जानकारी थी माफ के लिए दशमलव प्रणाली का प्रयोग किया जाता था इस समय वस्तु विनिमय प्रणाली प्रचलित थी
- ऐसा माना जाता है कि हड़प्पा सभ्यता के समय तोल की इकाई संभवत है 16 के अनुपात में थी
- उस समय आंतरिक तथा विदेशी व्यापार भी प्रचलन में था
- मेसोपोटामिया के साक्ष्य में हड़प्पा स्थल के लिए मेलूहा शब्द का प्रयोग किया गया
- आंतरिक व्यापार के समय तांबा खेतड़ी यानी राजस्थान से, सोना कर्नाटक से, शीशा राजस्थान से गोमेद सौराष्ट्र यानी गुजरात से मंगाया जाता था
- इस सभ्यता के समय आयताकार सेलखड़ी मुहरे सबसे अधिक प्राप्त हुई है जिन पर माना जाता है एक विशेष लिपि में लेख लिखे गए हैं परंतु उन्हें अभी तक डिकोड यानी पढ़ा नहीं जा सका है|
अब जानते हैं सिंधु घाटी सभ्यता यानी हड़प्पा सभ्यता का पतन किस प्रकार से हुआ यानी उसके नष्ट होने या समाप्त होने के क्या कारण थे?
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि सिंधु घाटी सभ्यता को समाप्त होने के लिए कोई एक कारण जिम्मेदार नहीं माना जाता है रिसर्चरों का मानना है कि इस सभ्यता को समाप्त होने के लिए निम्नलिखित कारण जिम्मेदार हैं
- मार्टियर हवीलर का मानना है कि इस सभ्यता को समाप्त होने का कारण आर्य आक्रमण है
- एस आर साहनी का मानना है कि जल प्लावन होने के कारण सिंधु सभ्यता का समापन हुआ है क्योंकि यह सभी सभ्यताएं नदियों के किनारे ही बसी थी
- मार्शल जैसे ज्ञानी का मानना है कि बाढ़ के कारण इस सभ्यता का पतन हुआ है
- आरेल स्टाइन का मानना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण सिंधु सभ्यता का विनाश हुआ है
- इसके अतिरिक्त अनेक कारण हैं जिनके लिए इस सभ्यता के विनाश का पतन माना जाता है
सिंधु घाटी सभ्यता से संबंधित कुछ मुख्य स्थल, प्राप्त वस्तुएं, नदी, खोजकर्ता और वर्ष आदि का विवरण निम्नलिखित प्रकार से है|
मुख्य स्थल | प्राप्त वस्तुएँ | नदी | खोजकर्ता और वर्ष (सन) |
मोहनजोदड़ो ( लरकाना, पाकिस्तान ) | 1. सबसे बड़ा स्थल 2. विशाल स्नानागार 3. कांस्य मूर्ति ( नग्न मूर्ति ) 4. पुरोहित की मूर्ति 5. महाविद्यालय 6. एक श्रृंगी पशु की मुद्राएं 7. शवों को जलाने की विधि मोहनजोदड़ो से प्राप्त | सिंधु | राखलदास बनर्जी ( 1922 ) |
हड़प्पा ( मॉन्टगोमेरी, पाकिस्तान ) | 1. सबसे पहले खोजा गया स्थल 2. अन्न भंडार, कांस्य दर्पण 3. R-37 के कब्रिस्तान ( दफ़नाने की विधि हड़प्पा से प्राप्त ) 4. श्रमिक आवास | रावी | दयाराम साहनी ( 1921 ) |
लोथल ( अहमदाबाद, गुजरात ) | 1. गोदीबाड़ा ( बंदरगाह ) 2. चावल के अवशेष 3. अग्निकुंड 4. हाथी दांत 5. तीन युगल समाधियाँ ( दो शवों को एक साथ दफनाने की विधि ) 6. घोड़ो की मृण्मूर्ति ( मिट्टी की मूर्ति ) | भोगवा | रंगनाथ राव ( 1957 ) |
कालीबंगा ( हनुमानगढ़, राजस्थान ) | 1. जुते हुए खेतों के प्रमाण 2. अग्नि के हवन कुंड 3. काले रंग की चूड़ियां 4. भूकंप के साक्ष्य | घग्गर | अमलानंद घोष |
राखीगढ़ी ( हिसार, हरियाणा ) | 1. भारत में स्थित सबसे बड़ा स्थल 2. ताम्र उपकरण | घग्गर | सूरजभान |
बनवाली ( हिसार, हरियाणा ) | मिट्टी के खिलौने वाले हल | सरस्वती | आर.एस. विष्ट |
चन्हुदड़ो ( सिंध, पाकिस्तान ) | 1. मनके बनाने का कारखाना 2. महिलाओं के सौंदर्य की वस्तुएं जैसे काजल, कंघा आदि 3. बिल्ली का पीछा करते हुए कुत्ते के निशान | सिंधु | अर्नेस्ट मैके एवं मजूमदार |
सुरकोटदा ( कच्छ, गुजरात ) | 1. कलश शवाधान ( एक कलश के अंदर शव के अंशों को दफ़नाने की विधि ) 2. घोड़े की हड्डी 3. तराजू | सरस्वती | जे.पी. जोशी |
रंगपुर ( अहमदाबाद, गुजरात ) | धान की भूसी, ज्वार और बाजरे की फसलों के प्रमाण | भादर | ऐस. आर. राव |
रोपड़ ( रूपनगर, पंजाब ) | तांबे की कुल्हाड़ी | सतलुज | यज्ञदत्त शर्मा |
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